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अखरोट के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction) अखरोट के पेड़ बहुत सुन्दर और सुगन्धित होते हैं, इसकी दो जातियां पाई जाती हैं। जंगली अखरोट 100 से 200 फीट तक ऊंचे, अपने आप उगते हैं। इसके फल का छिलका मोटा होता है। कृषिजन्य 40 से 90 फुट तक ऊंचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे कागजी अखरोट कहते हैं। इससे बन्दूकों के कुन्दे बनाये जाते हैं। गुण (Property) अखरोट बहुत ही बलवर्धक है, हृदय को कोमल करता है, हृदय और मस्तिष्क को पुष्ट करके उत्साही बनाता है इसकी भुनी हुई गिरी सर्दी से उत्पन्न खांसी में लाभदायक है। यह वात, पित्त, टी.बी., हृदय रोग, रुधिर दोष वात, रक्त और जलन को नाश करता है। हानिकारक प्रभाव (Harmful effects) अखरोट पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है। विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases) नोट : यहां केवल घरेलू उपचार की जानकारी शेयर की गई है ।  जो आयुर्वेद चिकित्सा का केवल 0.5% भी नही है।  यदि आपको इन उपायों से लाभ न मिले तो चिकित्सा हेतु अपने नजदिकी आयुर्वेद चिकित्सक से संपर्क करे  ।  प्रमेह (वीर्य विकार) : इसमें से 10ग ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से प्रमेह म...

चिरौंजी के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction) चिरौंजी के पेड़ विशाल होते हैं। चिरौंजी के पेड़ महाराष्ट्र, नागपुर और मालाबार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके पत्ते लम्बे-लंबे महुवे के पत्ते के समान मोटे होते हैं। इसकी पत्तल भी बनाई जाती है। इसकी छाया बहुत ही ठण्डी होती है। इसकी लकड़ी से कोई चीज नहीं बनती है। इसमें छोटे-छोटे फल लगते हैं। फलों के अन्दर से अरहर के समान बीज निकलते हैं। इसी को चिरौंजी कहा जाता है। चिरौंजी एक मेवा होती है। इसे विभिन्न प्रकार के पकवानों और मिठाइयों में डाला जाता है। इसका स्वाद मीठा होता है। इसका तेल भी निकलता है। यह बादाम के तेल के समान ठण्डा और लाभदायक होता है। गुण (Property) चिरौंजी मलस्तम्भक, चिकना, धातुवर्द्धक, कफकारक, बलवर्द्धक और वात विनाशकारी होता है। यह शरीर को मोटा और शक्तिशाली बनाता है। चिरौंजी कफ को दस्तों के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देता है। यह चेहरे के रंग को साफ करता है। चिरौंजी का हरीरा बादाम और चीनी के साथ उपयोग करने से बहुत अधिक मात्रा में धातु की वृद्धि होती है। इसका तेल बालों में लगाने से बाल गिरना बंद हो जाते हैं। हानिकारक प्रभाव (Harmful effects) चिरौंजी भार...

चुकन्दर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction) चुकन्दर एक कन्दमूल है। चुकन्दर में `प्रोटीन` भी मिलती है। यह जठर और आंतों को साफ रखने में उपयोगी है। चुकन्दर रक्तवर्द्धक , शक्तिदायक (शरीर मे ताकत देने वाला), शरीर को लाल बनाने वाला और कमजोरी को दूर करने वाला है। चुकन्दर का सेवन करने से शरीर का फीकापन दूर हो जाता है। शरीर लाल बनता है एवं शरीर में एक विशेष प्रकार की शक्ति और चेतना उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त चुकन्दर दूध पिलाने वाली स्त्रियों के स्तनों में दूध को बढ़ाता है, यह जोड़ों के दर्द को दूर करता है। यह यकृत (जिगर) को शक्ति देता है और दिमाग को तरोताजा रखता है। गुण (Property) चुकन्दर शरीर को शुद्ध और स्वस्थ करता है। यह बलगम को गलाकर बाहर निकालता है तथा गुर्दे के दर्द, झनकबाई और गठिया के लिए लाभदायक होता है। हानिकारक प्रभाव (Harmful effects) चुकन्दर का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेचिश (खूनी दस्त) रोग हो जाता है। विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases) जननांगों के रोग: गाजर के लगभग 1 गिलास रस में चुकन्दर का रस मिलाकर रोजाना 2 बार पीने से स्त्रियों के जननांगों से संबन्धित सारे रोग में लाभकारी है...

चौलाई के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction) चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर खायी जाती है किन्तु इसके सम्पूर्ण लाभ के लिए इसके रस को निकालकर पीना चाहिए। चौलाई की मुख्य रूप से दो किस्में होती हैं। 1. लाल 2. हरी लाल चौलाई के पौधे का तना लालिमा लिए हुए होता है। इसके पत्तों की रेखाएं भी लाल होती हैं। इसके पत्ते लम्बे गोल तथा ज्यादा बड़े न होकर मध्यम आकार के होते हैं। हरी किस्म के चौलाई के पौधों की डण्डी और पत्ते का पूरा भाग हरे रंग का होता है। इसके पत्ते बड़े होते हैं। जल चौलाई इसकी एक कांटेदार किस्म है। इसके गुण कुछ अंशों में बढ़कर परन्तु चौलाई के समान ही होते हैं। औषधि रूप में इसके पंचांग, जड़ और पत्तों का उपयोग होता है। गुण (Property) चौलाई में विटामिन `सी´, विटामिन `बी´ व विटामिन `ए´ की अधिकता होती है। विटामिनों की कमी से होने वाले सारे रोगों में चौलाई का रस विशेष लाभ प्रदान करता है। चौलाई का रस शरीर को स्वस्थ करता है तथा शरीर को तरावट देता है। गर्मी को शान्...

चीकू के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

परिचय ( Introduction) चीकू का पेड़ मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका के उष्ण कटिबंध का वेस्टंइडीज द्वीप समूह का है। वहां यह `चीकोज पेटी` के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु चीकू वर्तमान समय में सभी देशों में पाया जाता है। चीकू मुख्य रूप से तीन प्रकार के होता है। 1. लम्बा गोल। 2. साधारण लम्बा गोल। 3. गोल। कच्चे चीकू बिना स्वाद के और पके चीकू बहुत मीठे और स्वादिष्ट होते हैं। गोल चीकू की अपेक्षा लम्बे गोल चीकू श्रेष्ठ माने जाते हैं। पके चीकू का नाश्ते और फलाहार में उपयोग होता है। कुछ लोग पके चीकू का हलुवा बनाकर खाते हैं। इसका हलुवा बहुत ही स्वादिष्ट होता है। चीकू खाने से शरीर में विशेष प्रकार की ताजगी और फूर्ती आती है। इसमें शर्करा की मात्रा अधिक होती है। यह खून में घुलकर ताजगी देती है। चीकू खाने से आंतों की शक्ति बढ़ती है और आंतें अधिक मजबूत होती हैं। गुण ( Property) चीकू के फल शीतल, पित्तनाशक, पौष्टिक, मीठे और रुचिकारक हैं। इसमें शर्करा का अंश ज्यादा होता है। यह पचने में भारी होता है। चीकू ज्वर के रोगियों के लिए पथ्यकारक है। भोजन के बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ प्रदान करता है।...

Benifits of Ayurvedic cosmetic products

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Age defying activity ( Vayasthapana ) – The ingredient that nourishes the skin and ensures its optimum physiological functions and has an overall anti-aging property is called  vayasthapana , which literally means ‘maintaining youthfulness’ or ‘arresting age’.  Vayasthapana  herbs give overall support to the skin by keeping all three  doshas  in balance.  Centella asiatica  (Gotu-Kola) is the foremost  vayasthapana  herb with anti-aging effects; one of its many properties is to enhance collagen synthesis Youthful Radiance ( Varnya ) – An important group of herbs called  Varnya , has the ability to enhance the radiance or bright complexion of the skin. If the skin does not have a healthy glow, or  varnya  quality, then it is not considered youthful in Ayurveda.  Varnya  herbs include sandalwood, vetiver, Indian madder and Indian sarsaparilla and so on. Protection from normal wear and tear ( Sandhaniya ) –  Sandhan...

Did You Know About Ayurvedic Cosmeceuticals

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The origins of Ayurvedic Cosmeceuticals date back to the Indus Valley Civilization.  The use of cosmetics was not only directed towards developing an attractive external appearance, but towards achieving longevity with good health (Sanskrit -  Aayush  and  Aarogyam ).  There is evidence of highly advanced concepts of self-beautification, and a large array of cosmetics used by both men and women in ancient India. Many of these practices depended on the season ( Rutus ) and were subtly interwoven with daily routine ( Dinacharya ).  The whole range of cosmetic usage and its practice as conceived by the ancient Indians was based on natural resources. Skin care procedures forming the daily routine described in Ayurvedic literature consist of numerous formulae involving herbs and other natural ingredients. They were used as external applications in the form of packs, oils, herbal waters, powders etc.  Applications of these as pastes have been classified into...